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अपने पेट की सुने - पार्किंसंस के पीड़ितों के लिए अनुकूल आहार

Updated: Aug 22

हमारे बड़े हमेशा कहते थे "पेट की सुनो, दिमाग तुम्हारी सुनेगा" ये बात सोलह आने सत्य है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, हमारा पेट और मस्तिष्क जटिल विधि से एक दुसरे से संपर्क कर हमारे मूड में बदलाव लाते हैं। पहले हमारी सोच थी कि अवसाद और व्यग्रता के कारण हमें कब्ज़, मतली इत्यादि पेट से सम्बंधित तकलीफें होती हैं लेकिन हाल में किये गए एक अध्ययन से पता चला कि ख़राब पेट और कब्ज़ से अवसाद और व्यग्रता होने की संभावना हैं।


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हिप्पोक्रेट्स ने कहा हैं कि, "आपका खाना आपकी औषधि और आपकी औषधि आपका खाना होना चाहिए" हमारी भारतीय परंपरा तथा आयुर्वेद इस बात को सदियों से कहते आये हैं । वैसे सिर्फ आपका भोजन , दवाओं को स्थान नहीं ले सकता पर दवाओं के असर में इज़ाफ़ा करता हैं। ऐसा पेट और मस्तिष्क के जटिल संपर्क के कारण होता हैं।

कई वैज्ञानिक पार्किंसंस के रोगियों पर आहार के असर का अध्ययन कर रहे हैं। वैसे तो पार्किंसंस के लिए कोई ख़ास आहार नहीं होता हैं पर कुछ आहार संबंधी हस्तक्षेप हैं जो विशिष्ट परेशान करने वाले मुद्दों का समाधान कर सकते हैं।


शोध से पता चलता है कि आहार के कुछ पहलू लक्षणों की गंभीरता और उनकी प्रगति दर को बदल सकते हैं। इन अध्ययनों द्वारा दिए गए मुख्य सुझाव इस प्रकार हैं:

· ताज़े फल और सब्ज़ी , सूखे मेवे (अखरोट, पिस्ता), ताज़े मसाले (हल्दी, जीरा ,धनिया ,राइ ,लौंग वैगरह) नारियल तेल, अंडे आदि से पार्किंसंस के लक्षणों की तीव्रता में कमी आती हैं। ताज़ी फल एंड सब्ज़ियों वाला आहार पार्किंसंस के रोगियों के लिए फायदेमंद हैं।

· दुग्ध पदार्थो का उपभोग , तेलिया पदार्थ और डिब्बे में संरक्षित (canned) फल सब्ज़ियां के सेवन से पार्किंसंस के लक्षणों में तीव्रता आती हैं। इन वस्तुओं का सेवन ना करना ही फायदेमंद हैं।

· कार्बीदोवा -लेवोडोपा (Carbidopa - levidopa) ये दवाएं जो पार्किंसंस के लिए सामान्य तौर पर ली जाती हैं, वो छोटी आँतड़ियों में आत्मसात (absorb) होती हैं। अगर इनके सेवन के साथ अगर हाई प्रोटीन खुराक ली जाए तो इन दवाओं का असर कम हो जाता हैं। इन औषधियों के असरदार होने के लिए कम प्रोटीन वाला आहार लेना चाहिए। दालें , राजमा , अंडे या मांस तब खाएं जिस समय आप वो दवा ना ले रहे हो। (यानि की अगर आप ये औषदि सुबह ले रहे हैं , तब प्रोटीन वाला आहार ना ले, रात को ये चीज़ों का सेवन कर ले )



इसके अलावा कुछ लक्षण रोज़मर्रा के आहार से काबू में किये जा सकते हैं। ये कुछ सुझाव हैं, जिनका आप अनुसरण कर सकते हैं:


· कब्ज़ : ज्यादा रेशे वाला खाना (छिलको के साथ फल , सब्ज़ियां और फलियां आदि ) कब्ज़ से छुटकारा दिलवा सकते हैं। सुबह गरम पानी या और गर्म तरल पदार्थ पीने से भी फायदा होता हैं।

· गैस्ट्रोपारेसिस (Gastroparesis) : इसमें पेट साफ़ होने में समय लगता हैं। ज्यादा तेलिये पदार्थो का सेवन ना करें।

· मतली : एक समय में ज्यादा भोजन ना खाये , ताकि आपका पेट पूरी तरह से ना भरें। अदरक वाली गोली या अदरक वाली चाय पीने से भी काफी फरक पड़ता हैं।

· कम रक्तचाप : एक समय पर कम खाना खाएं लेकिन बार बार खाएं। तरल चीज़ों का सेवन करें। लेकिन कॉफ़ी और मधपान ना करें।

· निगलने में दिक्कत : खांसी आना , खाना गले में अटकना इत्यादि। ऐसे में नरम खाना खाएं या ऐसा खाना खाएं जिसे खाने से निगलने को प्रोत्साहित करे (जैसे सोडा , खट्टा या मसालेदार)। धीरे धीरे खाना , छोटे छोटे निवाले खाना इसमें मदद कर सकते हैं।

· नींद आने में तकलीफ : मेलाटोनिन (Melatonin) से भरपूर आहार जैसे अनानास , संतरा और केला आदि से नींद आने में मदद मिलती हैं। लेकिन इन्हें ज्यादा मात्रा में नहीं खाना चाहिए।

· संज्ञानात्मक शिथिलता (Cognitive dysfunction) : ज्यादा कैफीन के सेवन से इसमें फायदा होता हैं।

· चाल और संतुलन : पर्याप्त प्रोटीन के सेवन से मांसपेशियों में ताकत आती हैं। विटामिन बी वाला आहार जैसे अंडे , मांस जिसमें ज्यादा चर्बी ना हो, सबूत अनाज आदि सहायक सिद्ध हुआ हैं।


कुछ पूरक (Supplements) के फायदा बताये गए हैं लेकिन अभी तक इनके बारे में ज्यादा शोध नहीं हुआ हैं। इस लिए सप्लीमेंट्स लेने से पहले डॉक्टर से सलाह करना आवश्यक हैं। इन सप्लीमेंट्स के कई दुष्प्रभाव हैं इस लिए इन्हें लेते हुए सतर्कता बरतनी चाहिए।


हालांकि भोजन के बदलाव से कुछ लक्षणों में कुछ फायदा और तीव्रता में कमी आती हैं। ये ध्यान रखना आवश्यक हैं कि ये सभी के लिए उपयुक्त नहीं होता हैं। अगर आहार में बदलाव से आपके लक्षणों में तीव्रता मह्सूस होने लगे तो आपको अपना सामान्य आहार लेना शुरू कर देना चाहिए और अपने डॉक्टर से बात करे।

अगर आप अपनी खुराक में बदलाव कर रहे हैं, तो संतुलन में करें। जैसा की संत कबीर ने कहा है, "अति का भला ना बोलना , अति की भली ना चुप , अति का भला ना बरसना , अति की भली ना धुप " अर्थात संतुलन ज़रूरी है।


References: Research Articles-

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