शोभना ताई तीर्थली
फ्लावर रेमेडी सिखाने के लिए मुझे आनंदवन जाना था। मेरे साथ श्री तीर्थली भी जाने वाले थे। हमारा विचार था की वर्धा तक हम गरीबरथ से जाएंगे। हम निकलने ही वाले थे कि डा भारती आम्टे का फ़ोन आया , उन्होंने हमे बताया कि हमे लेने के लिए वे स्टेशन तक गाडी भेज देंगी , और फिर हमसे पुछा की क्या साहेब के लिए वो व्हीलचेयर का इंतज़ाम करे ? इसपर मैंने झट से जवाब दिया "नहीं ! बिल्कुल नहीं। व्हीलचेयर की कोई आवश्यकता नहीं है। " जब हम अमेरिका गए थे तब मैंने इनके लिए व्हीलचेयर का इंतज़ाम किया था पर इन्होंने उसका बिल्कुल उपयोग नहीं किया था।
मैंने महसूस किया की बहुत से लोग पार्किसंस और व्हील चेयर को अपने दिमाग में जोड़ लेते हैं। श्रद्धा भावे ये पार्किंसंस की शुभचिंतक हैं। जब उनके घर उनसे मिलने गए थे तब उन्होंने कहा था , कि "मैं व्हील चेयर पर कभी ना बैठु ये मेरी एकमात्र इच्छा है। " अक्सर साहेब अपने शुभचिंतको को उनके जन्मदिन पर बधाई देने के लिए पत्र लिखते थे। उन्होंने श्रद्धा भावे को जन्मदिन की बधाई देते हुए ये शुभआशीष दिया था कि उन्हें कभी व्हील चेयर पर ना बैठना पढ़े । ये बात साहेब ने उनकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए कही थी। ये पढ़कर श्रद्धा काफी खुश हुई और ये उसने साहेब और मुझे मिलने पर साझा की। कहने का तात्पर्य ये की पार्किंसंस का निदान होते ही मस्तिष्क में व्हीलचेयर आती है।
साहेब को पार्किंसंस का निदान होते ही मैंने एक अखबार में पार्किंसंस पर एक छोटा सा लेख पढ़ा था , जिसमें लेखक ने पार्किंसंस की आखरी सीढ़ी व्हील चेयर को बताया था। उसमें लेखक ने व्हील चेयर पर बैठे पार्किंसंस पीड़ित की दयनीय स्थिति का वर्णन किया था। उसको पढ़ने का मुझपर ये असर हुआ की मैंने पार्किंसंस के बारे पढ़ना छोड़ दिया था। ये बहुत पुरानी बात है।
पर पार्किंसंस मित्रमंडल से जुड़ने के बाद मेरे मन से डर निकल गया। मैं करीब करीब दस वर्षों से इस मंडल से जुड़ी हुई हूँ ,साढ़े तीन सौ से चार सौ लोग हमेशा सूची में होते हैं। कुछ इस दुनिया से चले गए, कुछ नए आये , लेकिन ये सामान्य संख्या है। इतनी बड़ी संख्या में , इतने समय में मुझे सिर्फ चार या पांच रोगी ही व्हील चेयर पर नज़र आये है। उस में भी हर कोई पार्किंसंस की वजह से व्हील चेयर पर नहीं था । किसी के घुटनों की समस्या थी तो कोई ऑस्टियोफोरेसिस की समस्या के कारण अलग अलग जगहों पर कई ऑपरेशन करा चुके थे। इस लिए पार्किंसंस की वजह से व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ता है ये बात दिमाग से निकाल देनी चाहिए। और दूसरी बात ये है व्हीलचेयर को एक सहायक के रूप में देखना भी महत्वपूर्ण है। मैं ऐसे कई शुभचिंतकों से मिली हूँ जिनका दृष्टिकोण बेहद सकारात्मक है और वे व्हीलचेयर का उचित उपयोग करते है।
श्री मधुसूदन शेंडे , जिन्होंने पार्किंसंस मित्रमंडल की शुरुआत की वे मंडल के पचहत्तरवें कार्यक्रम में व्हीलचेयर पर आये थे। व्हीलचेयर का नाम लेते ही बेचारे ! ऐसी भावना आती है , उसी तरह से मुझे भी उनके लिए काफी बुरा लगा। मुझे ये सोचकर बेहद दुःख हुआ कि इतने स्वस्थ व्यक्ति को व्हीलचेयर पर आना पड़ा। लेकिन अगले महीने जब हम श्री शेंडे के यहाँ मीटिंग के लिए गए , तब वे हमारे लिए ट्रे में चाय लेकर खुद आये। इस घटना से मेरी ये गलतफहमी भी दूर हो गयी की एक बार व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने पर हमेशा ही उसका इस्तेमाल करना पड़ता है। व्हीलचेयर का उपयोग सीमित समय के लिए भी किया जा सकता है।
यदि हम व्हीलचेयर को एक सहायता के रूप से देखें , जैसे हम चश्मा पहनते हैं या श्रवण यंत्र का उपयोग करते हैं , तो उससे डरने के कारण नहीं हैं। दूसरा उदाहरण हमारे अग्निहोत्री परिवार पति -पत्नी। दोनों को पार्किंसंस है। क्योंकि वे पास में ही रहते थे मैं अक्सर उनसे मिलने उनके घर जाती थी। एक बार जब मैं उनसे मिलने गयी , तब वे दरवाजा खोलने व्हीलचेयर पर आयी तो मुझे लगा कि इन्हें हमेशा ही व्हीलचेयर की ज़रूरत होती होगी। वैसे तो उनके पास चौबीस घंटो के लिए के सहायक थे। बाद में बात करते करते वह हमें कुछ देने के लिए व्हीलचेयर से उठीं और बोली "मैं आज ज़रा थकान महसूस कर रही हूँ , इसलिए व्हीलचेयर का उपयोग कर रही हूँ। अगर मुझे कपडे बदलने हो या घर के कुछ काम हो या यहाँ वहाँ जाना हो तो मैं व्हीलचेयर का उपयोग करने में समझदारी समझती हूँ। वैसे तो अपने कार्य स्वयं करना पसंद करती हूँ।" जब मुझे ये एहसास हुआ कि कोई ऐसा भी सोच सकता हैं तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई।
श्री करणी, जो हमारे एक अन्य शुभचिंतक हैं , उन्होंने तो अपनी स्वयं की व्हीलचेयर डिज़ाइन की है। उन्होंने प्लास्टिक की एक कुर्सी को लकड़ी के बोर्ड में फिट किया हैं और पहियों को बोर्ड से जोड़ दिया है। ज़रूरत पड़ने पर वे उस कुर्सी पर बैठते हैं और इधर उधर घूमते हैं। वे खड़े भी हो सकते हैं , चल भी सकते हैं , लेकिन ज़रूरत के समय यह कुर्सी काम आती है।
ऐसा ही एक उदाहरण हैं श्री गोगटे का। उनकी पत्नी अब नहीं रहीं। लेकिन उन्होंने जो कुर्सी बनायी उसपर कपडा चढ़ा कर उसे फोल्डिंग चेयर बना दिया गया ताकि उसे कार में ले जाया जा सके। इसलिए, अगर उन्हें कहीं जाना होता था , वे व्हीलचेयर से कार तक जाते और फिर उसे फोल्ड कर गाडी में रख लेते।
इन सभी अनुभवों के कारण मेरे मन में व्हीलचेयर को लेकर जो डर था वह भी ख़त्म हो गया। दो बातें स्पष्ट हो गई। जैसा की कहा गया हैं , यह याद रखना महत्वपूर्ण हैं कि पार्किंसंस से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को व्हीलचेयर की आवश्यकता नहीं है। और व्हीलचेयर को सकारात्मक रूप से देखा जाना चाहिए। अगर ये होता हैं तो पार्किंसंस के साथ ख़ुशी से रहने में ये बहुत मददगार हो सकती हैं।
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