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पार्किंसंस के भावुक पल #२
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पार्किंसंस के भावुक पल #२

Updated: Apr 8

शोभना ताई तीर्थली

किस्सा श्री मोरेश्वर काशीकर का


(Read it in English) (मराठी भाषेत वाचा) हमारी फ़िज़ियोथेरेपिस्ट रेनिसा सोनी के यहाँ हम काशीकरजी का इंतज़ार कर रहे थे। वह रेनिसा को बेल्ट बाँधने का तरीका सीखाने आने वाले थे। समय के मामले में वे बेहद समयनिष्ठ (पंचुअल) होने के कारण उनका समय पर न पहुँच पाना हमारे लिए चिंता का विषय था। श्री काशीकर हमारे शुभचिंतक है , उन्हें २०११ में पार्किंसंस रोग हुआ। आज वे ८१ वर्ष के हैं।


श्री मोरेश्वर काशीकरजी वर्ष १९६१ में पुणे के इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के तौर पर उत्तीर्ण हुए। उसके पश्चात लगभग ३९ वर्षों तक उन्होंने नौकरी की और सेवा निवृत होने पर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के सलाहकार के रूप में कार्य करने लगे। इसके अलावा उन्होंने योग का प्रशिक्षण देना और लोगों की सेवा करना भी शुरू कर दिया। पुणे के प्रसिद्ध कबीर बाग़ में वे सिखाने जाते थे। कबीर बाग़ में योगोपचार के लिए अलग अलग साधन काम में लिए जाते है, उसमें बेल्ट भी है। ये बेल्ट बाँधने का कार्य काशीकरजी ने निपुणता हासिल कर ली ।


पार्किंसंस के रोगियों के कमर पीछे से झुकने लगते है , इस लिए काशीकरजी ने बेल्ट का उपयोग सुझाया। उनका कहना था कि अगर पार्किंसंस पीड़ित शुरू से ही इस बेल्ट को उपयोग में लेने लगे तो उनके झुकने की क्रिया कम हो जाती है। अंदर बेल्ट पहन कर ऊपर से शर्ट पहन लेने के बाद बिना किसी तकलीफ के बाहर घुमा जा सकता है। एक बार उन्होंने अश्विनी सभागृह में भी इसको बाँधने के प्रदर्शन किया था। वह देखने के बाद कई लोगों ने काशीकरजी को अपने घर बुलाया था और वे हर किसी के घर जाकर बेल्ट कैसे बंधा जाए ये दिखाते थे। इससे पहले वे इस सिलसिले में हमारे घर आये थे।


पार्किंसंस को लेकर सर सतत अपने आप पर प्रयोग करते रहते है। मंडल के वर्ष २०१५ की स्मरणिका में उन्होंने "ट्रिमर्स से दोस्ती -एक प्रयोग" अपने ऊपर किये गए प्रयोग पर आधारित एक लेख लिखा था। उन्होंने अपने ऊपर ये संसोधन किया था और उनका मानना था कि ये प्रयोग उपयोगी हो या नहीं , पर कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं। ये बात उन्होंने अपने लेख में भी लिखी थी।


एक तो सर यानि के काशिकारजी की योग पर काफी आस्था रही है। इस लिए उनका कहना था कि सभी को रोज़ व्यायाम करना चाहिए। उन्होंने लेख के नीचे अपना फ़ोन नंबर दिया हुआ था। इस लिए लोग उन्हें फ़ोन कर बुला लेते। पहले वे स्कूटर चलाते थे ,और उसी स्कूटर पर सब के घर पहुँच जाते थे। लेकिन कुछ समय पश्चात पार्किंसंस के कारण उनके पैरों में समस्या होने लगी तो वे ऑटो रिक्शा से सबके घर जाने लगे। " मैं जितनी बार लोग चाहते है उतनी बार बेल्ट बांधना सीखा दूंगा , लेकिन कोई इस बेल्ट को पहनता नज़र नहीं आता " इस एक बात का उन्हें बहुत दुःख होता था। सर अगर कई दिंनो तक हमारे घर नहीं आते थे , तो मैं चिंतित हो जाती थी और उन्हें फ़ोन करना चाहती थी लेकिन डरती थी कि वे मुझसे "आपका रक्तचाप (ब्लड प्रेशर ) कैसा है ? मेरे बताये योगासन कर रहीं है ना " ज़रूर पूछेंगे। मेरी कश्मकश ये थी कि झूठ बोलने में मेरी जुबान लड़खड़ाती और सच बोलने से मैं शर्म आती क्योंकि मैंने व्यायाम है किये ही नहीं होते। पर फिरभी वे बिना नाराज़ हुए हमारे बुलाने पर आ जाते और आज तो फ़िज़ियोथेरेपिस्ट भी आने वाली थी।


सर के बताये अनुसार मैंने कई बार बेल्ट बाँधने का प्रयत्न किया पर एक तो वो मुझसे बंधती ही नहीं थी, दुसरे फ़िज़ियोथेरेपिस्ट को अपनी फिजियोथेरेपी करने के बाद तीरथली साहब को बेल्ट बाँध देंगी , इस उदेश्य से उन्हें बुलाया था। हमारी फ़िज़ियोथेरेपिस्ट भी ये सीखना चाहती थी। रेनिसा सोनी नामक ये फ़िज़ियोथेरेपिस्ट को नई नई चीज़ें सीखने का शौक था।


हम ये सोच ही रहे थे कि सर अब तक आएं क्यों नहीं , कि सर भीतर आते हुए नज़र आये। वे जैसे ही अंदर आये हमने देखा कि वे एकदम फ्रीज़ हो गए हैं। उन्हें फ्रीजिंग के तकलीफ शुरू हो गयी हैं हमें इसकी जानकारी नहीं थी। फ्रीजिंग का अर्थ हैं कि कुछ क्षणों के लिए मनुष्य एकदम पुतला बन जाता हैं , बिल्कुल हिलडूल नहीं पाता। पार्किंसंस के कुछ रोगियों हो ये तकलीफ हो जाती हैं। ऐसे वक़्त में इंसान एकदम घबरा जाता है। लेकिन सर ने बिल्कुल विचिलित हुए बिना मुझे रुकने का इशारा किया और वहाँ खड़े एक सहायक ने हाथ पकड़कर उन्हें एक कुर्सी पर बैठा दिया। ये सब देखकर मैं खुदको अपराधी महसूस करने लगी और उनसे पुछा' "सर, अगर आपको ये तकलीफ हो रही थी तो आप हमसे कह देते , हम आपके घर आ जाते। " इस से पहले भी बेल्ट बांधना सीखने के लिए हम उनके घर गए थे। उन्होंने उसी तरह कुर्सी पर बैठे बैठे उत्तर दिया ,"नहीं मुझे उसमें कोई तकलीफ नहीं है। दरअसल, मैं काफी देर से रिक्शा का इंतज़ार कर रहा था , लेकिन रिक्शा मिल ही नहीं रही थी। वो तो मेरा बेटा गाडी से एयरपोर्ट जा रहा था , उसने मुझे यहां तक छोड़ दिया। इस लिए मुझे आने में देर हो गयी। इस लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। " ये सुनकर मुझे बहुत तकलीफ हुई। अगर वह कह देते कि वे नहीं आ पाएंगे तो भी चल जाता , लेकिन फिरभी वह यहां तक आएं और बेल्ट कैसे बाँधी जाती है , ये दिखाने के लिए उत्सुक थे। इतना कष्ट सहकर भी काशीकरजी आये , ये देखकर मेरी आँखों में सचमुच आंसू आ गए।


लेकिन सर बिल्कुल शांत थे। फ्रीजिंग के कारण उनके मस्तिष्क में दर्द था वह कुछ प्रक्रिया से उसे काबू में कर , उस अवस्था से बाहर आये । फिर उन्होंने रेनिसा को बेल्ट बांधना सिखाया। मुझे काफी हैरानी हुई , काशीकरजी को लोगों को सिखाने का उत्साह हैरान करने वाला था। और कोई होता तो ऐसी परिस्थिति में कही जाने का विचार ही नहीं करता लेकिन सर ने ऐसा नहीं किया। और ये करते हुए "मैं बहुत कुछ कर रहा हूँ" ये भी नहीं जताया।


रेनिसा को भी वे बहुत अच्छे लगे। उसने भी बेल्ट वाले उपाय को सही बताया। फिजियोथेरेपी के बाद वो तीरथली साहब को बेल्ट बाँधने लगी , तो इन्हें भी अच्छा लगा। अगर आप सारा दिन वो बेल्ट पहने रहे तो भी कोई कठिनाई नहीं होती ,ये बेल्ट सच में काफी आरामदेह है। आश्चर्य की बात ये थी कि कई बार प्रयत्न करने के बावजूद मैं ये बेल्ट नहीं पहना पाती थी , लेकिन ना जाने काशीकरजी स्वयं ही को ये बेल्ट कैसे बाँध लेते थे। वह सभा में आकर कहते थे कि "मैं बेल्ट बांधकर ही आया हूँ "। ये मेरे लिए आश्चर्य की बात थी।


रेनिसा से सर ने कहा कि , "फ़िलहाल तो ये बेल्ट कमर को झुकने से रोकने के लिए बांध रहे है , पर इसका उपयोग हम कई और चीज़ों में भी कर सकते है। जब मैंने ये सीखा तब मैंने अलग अलग तरह के रेखाचित्र बनाये है और ४०० पन्नों के नोट्स लिखे है। मेरे पास ये सब तैयार है , अगर कोई सीखना चाहें तो मैं सिखाने के लिए भी तैयार हूँ। " उसपर रेनिसा ने वायदा किया की वो खुद और उसकी एक शिक्षिका उनसे मिलने आएंगी । उसके बाद काशीकरजी मुझसे अक्सर पूछते कि आपकी फ़िज़ियोथेरेपिस्ट कब आ रहीं है, और मैं रेनिसा से बदले में ये ही सवाल करती रही लेकिन वो इतनी व्यस्त थी कि चाहकर भी नहीं जा पायी। सर को मैं क्या उतर दूँ, ये धीरे धीरे मेरे लिए भी बड़ा प्रश्न बन गया । लेकिन अपना ज्ञान को आगे और औरों तक पहुँचाने की उनकी तड़प मैं समझ पा रही थी। पार्किंसंस मित्रमंडल में फिजियोथेरेपी और इंजीनियरिंग के कई विद्यार्थी रिसर्च के सिलसिले में आते रहते है। काशीकरजी उन सभी की दिल से मदत करते है , लेकिन वे खुद भी एक रिसर्चर होने के कारण जब ये देखते कि विद्यार्थी हाथ में लिए काम को लेकर गंभीर नहीं है तो वे बहुत नाराज़ होते है।


वर्तमान में तो सर का पार्किंसंस बढ़ गया है और फ्रीजिंग भी बढ़ गई है। जनवरी के महीने मैंने उनको दो बातें जानने के लिए फ़ोन किया एक तो उस महीने में उनका जन्मदिन होता है और दुसरे ये कि मंडल की सभा की शुरुआत ,काशीकरजी के द्वारा की गई प्रार्थना से होती है तो क्या वह आ रहे हैं ? उसपर उन्होंने उतर दिया कि "मुझे बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस हो रही हैं , इस लिए मैं नहीं आ पाऊंगा लेकिन अगली बार ज़रूर आऊंगा। इन दिनों मैं पार्किंसंस के रोगी कौनसा व्यायाम करे और कैसे करें , इसपर एक विवरणिका लिख रख रहा हूँ जो रेखाचित्रों के साथ लगभग तैयार हैं। क्या हम इसकी एक बुकलेट बना सकते हैं ताकि वो लोगों तक पहुंचे ?" उनका ये विचार सुनकर मैं नतमस्तक हो गयी। सिर्फ इतना ही कह पायी " काशीकर सर ,आपको हैट्स ऑफ !" उनका काम पूरा होते ही हम बुकलेट ज़रूर बनाएंगे और लोगों में वितरण करेंगे। पर सर की ओर से मैं लोगों से अनुरोध करूंगी कि हमारे आसपास जो उत्साही व्यक्ति हैं वो हमें एक सकारत्मक ऊर्जा से भर रहे होते हैं और उनके कारण ही हमारे जीवन में कई भावुक क्षण आते हैं।


बस पार्किंसंस मित्रमंडल की ओर से ये ही शुभकामना हैं कि काशीकरजी के ज्ञान का मार्गदर्शन हमें मिलता रहे।

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